अनंत यात्रा......
मित्रो ,हम देखते है की जब हम किसी यात्रा पर निकलते है तो कई तरह का साजो सामन हम जुटा लेते है .....पर हम क्या अपनी अनंत यात्रा के लिए कोई सामान जुटाते है ....नहीं .... हम उन सारी यात्रो के लिए धन ,तन, मन से कई सारा सामान इकट्ठा करते है ,जिन यात्रो के बारे में कोई भी कभी भी ये कह नहीं सकता है की वो पूरी होंगी ही ..... पर उस यात्रा के लिए ,हम कुछ नहीं इकट्ठा करते है , जो की निश्चिंत है ..हमारे मृत्यु की यात्रा ..एक ऐसी अनंत यात्रा ,जिसके बारे हम सब जानते है कि ,वो पक्की होंगी ....
पर क्या हमने उस अनंत यात्रा के लिए कभी कुछ इकठ्ठा किया है .. नहीं ... क्योंकि हम ऐसे मूर्ख है कि ,उस यात्रा के लिए सारा साजोसामान इकठ्ठा किया है ,जिसकी कोई guarantee नहीं है पर मृत्यु की अनंत यात्रा के लिए कुछ भी नहीं ... क्योंकि हम इस एक मात्र निश्चित यात्रा के लिए डरते है ....हम इस यात्रा को करना ही नहीं चाहते ..जो की हमें अपने प्रभु से मिलवा दे.......
आईये , ज़रा इस बारे में सोचे ...और इकठ्ठा करे ऐसी सम्पति जो हमें हमारी अनंत यात्रा को करने में सहायक होंगी .. और क्या है ये सम्पति ...... ये है प्रेम, करुणा, दया, मित्रता, अच्छाई , पुण्य ,धर्म, अध्यात्म ...... ये सारे के सारे वो सम्पति है ,जो कि बहुत आसानी से जमा की जा सकती है ....
आईये , हम प्रण करे कि आज से ही इन सारी प्रीतियों को इकट्ठा करे और और अपनी अनंत यात्रा को सुगम , सरल और सहज बनाये .. ताकि जब हम अपने प्रभु से मिले .. तो हमारे भीतर का मनो मालिन्य , अंहकार , क्रोध, माया इत्यादि को त्याग कर चुके हो और परम पिता परमेश्वर के सामने हम सर झुका कर , उन्हें प्रणाम करते हुए , उनके चरणों में अपने आपको गिरा कर , उनसे अपने विषय-वासना के कार्यो के लिए क्षमा मांगते हुए उनकी शरण में जाए...प्रणाम !!!
मित्रो ,हम देखते है की जब हम किसी यात्रा पर निकलते है तो कई तरह का साजो सामन हम जुटा लेते है .....पर हम क्या अपनी अनंत यात्रा के लिए कोई सामान जुटाते है ....नहीं .... हम उन सारी यात्रो के लिए धन ,तन, मन से कई सारा सामान इकट्ठा करते है ,जिन यात्रो के बारे में कोई भी कभी भी ये कह नहीं सकता है की वो पूरी होंगी ही ..... पर उस यात्रा के लिए ,हम कुछ नहीं इकट्ठा करते है , जो की निश्चिंत है ..हमारे मृत्यु की यात्रा ..एक ऐसी अनंत यात्रा ,जिसके बारे हम सब जानते है कि ,वो पक्की होंगी ....
पर क्या हमने उस अनंत यात्रा के लिए कभी कुछ इकठ्ठा किया है .. नहीं ... क्योंकि हम ऐसे मूर्ख है कि ,उस यात्रा के लिए सारा साजोसामान इकठ्ठा किया है ,जिसकी कोई guarantee नहीं है पर मृत्यु की अनंत यात्रा के लिए कुछ भी नहीं ... क्योंकि हम इस एक मात्र निश्चित यात्रा के लिए डरते है ....हम इस यात्रा को करना ही नहीं चाहते ..जो की हमें अपने प्रभु से मिलवा दे.......
आईये , ज़रा इस बारे में सोचे ...और इकठ्ठा करे ऐसी सम्पति जो हमें हमारी अनंत यात्रा को करने में सहायक होंगी .. और क्या है ये सम्पति ...... ये है प्रेम, करुणा, दया, मित्रता, अच्छाई , पुण्य ,धर्म, अध्यात्म ...... ये सारे के सारे वो सम्पति है ,जो कि बहुत आसानी से जमा की जा सकती है ....
आईये , हम प्रण करे कि आज से ही इन सारी प्रीतियों को इकट्ठा करे और और अपनी अनंत यात्रा को सुगम , सरल और सहज बनाये .. ताकि जब हम अपने प्रभु से मिले .. तो हमारे भीतर का मनो मालिन्य , अंहकार , क्रोध, माया इत्यादि को त्याग कर चुके हो और परम पिता परमेश्वर के सामने हम सर झुका कर , उन्हें प्रणाम करते हुए , उनके चरणों में अपने आपको गिरा कर , उनसे अपने विषय-वासना के कार्यो के लिए क्षमा मांगते हुए उनकी शरण में जाए...प्रणाम !!!
9 comments:
सही कहा आपने.
सही कहा आपने.
सही कहा...बेहतरीन.
बिल्कुल ठीक।... कोशिश तो की ही जा सकती है
http://veenakesur.blogspot.com/
बिलकुल सही लिखा है आप ने|
इस सुंदर नए चिट्ठे के साथ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!anter
आईये , ज़रा इस बारे में सोचे ...और इकठ्ठा करे ऐसी सम्पति जो हमें हमारी अनंत यात्रा को करने में सहायक होंगी .. और क्या है ये सम्पति ...... ये है प्रेम, करुणा, दया, मित्रता, अच्छाई ,पुण्य ,धर्म, अध्यात्म ...... ये सारे के सारे वो सम्पति है, जो कि बहुत आसानी से जमा की जा सकती है ....
@ आपने अपने हृदयम [घर] में 'अनंत यात्रा' नामक प्राइवेट स्कूल खोला और उसमें 'सम्पत्ति' नामक क्लास में कम-ज़्यादा योग्यता रखने वाले बच्चों [शब्दों] को भर्ती कर लिया,
— प्रेम, करुणा, मित्रता ये तो भाव (सदभाव) हैं. जिसमें 'दया' करुणा बहिनजी के घर का ही नाम है, अलग से नाम मत चढ़ाइए. वे डबल फीस नहीं दे सकते, गरीब परिवार है भाई, ज़रा दया करो.
— अच्छाई और पुण्य ........ विशेषण हैं. जो सदभाव से प्रेरित होकर कर्म होते हैं वे सभी 'पुण्य' हैं. और यही वैयक्तिक और सामाजिक स्तर पर अच्छाई कहलाती है.
— धर्म और अध्यात्म को भी आपने उसी कक्षा में बैठा दिया, मित्र इन्हें कोलिज में एडमिशन दिलवाओ. ये दोनों ही व्याख्या सापेक्ष शब्द हैं. इनका विस्तार इतना अधिक है जिनमें प्रेम, करुणा जैसे तमाम भाव समाहित रहते हैं.
@ इनमें से कइयों को जमा तो किया ही नहीं जा सकता
— आप प्रेम को जबरन जमा भी करेंगे, तो वह एक दिन ज्वालामुखी की तरह फट पढेगा और उसमें से वासना का लावा निकल-निकलकर फैलेगा. अतः उसे जमा करने की बजाय सभी के लिए हमेशा उपलब्ध रखो.
— आप करुणा/दया को केवल जमा ही करेंगे, तो वह भी आपको भावुक, कमजोर ही बनाएगा. उसका तुरंत इस्तेमाल करना ही कारगर है.
— मित्रता भी सहजता से जमा की जाने वाली दौलत नहीं. ये तो मन मिल जाने पर निभाया जाने वाला कर्तव्य है.
हाँ, इनके [प्रेम, करुणा और मित्रता के] पौधे दूसरों के ह्रदय में जमाये जा सकते हैं. जो अपनी 'अनंत यात्रा' के समय फलदायी होंगे.
blog par aakar jaise adhyatmik khazaana pa gaya. dhanyawaad.
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